-8.5 C
New York
Monday, December 23, 2024

Buy now

spot_img

चिरौंजी बेचकर आत्मनिर्भर बन रहा निपनिया का जनजातीय समाज, CM शिवराज ने की तारीफ

सीएम शिवराज सिंह चौहान ने निपनिया और केवलारी गांव के जनजाति समाज से भेंट की.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार को बड़गांव में आयोजित रोड शो के दौरान वनोपज चिरौंजी बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे निपनिया और केवलारी गांव के जनजाति समाज से भेंट की. मुख्यमंत्री चौहान ने जनजातियों द्वारा किए जा रहे चिरौंजी की बिक्री के कार्य के व्यावसायिक रूप से और अधिक सक्षम और सुदृढ़ बनाने के लिए दो लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की. जनजातीय समाज ने मुख्यमंत्री चौहान को चिरौंजी का पैकेट उपहार स्वरूप प्रदान किया.

मुख्यमंत्री ने जनजातीय समाज को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की दिशा में उठाए गए प्रयासों के लिए जिला प्रशासन की सराहना की. सीएम से रोड शो के दौरान मिले निपनिया और केवलारी के जनजातीय समाज ने बताया कि कृषि विभाग की आत्मा परियोजना की मदद से रानी दुर्गावती बहुउद्देशीय सहकारी समिति का गठन कर चिरौंजी प्रसंस्करण की इकाई स्थापित करने के बाद उन्हें चिरौंजी की अच्छी कीमत मिलना शुरू हुई. मुख्यमंत्री यह सुनकर बेहद खुश हुए. उन्होंने समिति के सदस्य महेश सिंह और मदन उरेती से बात कर अचार की गुठलियों से चिरौंजी निकालने तक की पूरी प्रक्रिया की जानकारी ली.

जनजातीय बंधुओं ने मुख्यमंत्री चौहान को चर्चा के दौरान बताया कि प्रसंस्करण यूनिट लगने के पहले तक व्यापारी और साहूकार उनसे मात्र 100 रूपए प्रति किलोग्राम की दर से चिरौंजी खरीदते थे और खुद चिरौंजी को खुले बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमाते थे, लेकिन अब वे खुद चिरौंजी की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग करते हैं और सौ ग्राम चिरौंजी 180 रूपए में बेचते हैं. मुख्यमंत्री चौहान ने जनजातीय वर्ग के आर्थिक उत्थान के लिए प्रशासन द्वारा किए गए प्रयासों की भी प्रशंसा की.

400 जनजातीय परिवार चिरौंजी की पैकेजिंग कर कमा रहे मुनाफा

जिले के बहोरीबंद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले निपानिया और केवलारी ग्राम के करीब 400 जनजातीय परिवार आस-पास के वन में लगे अचार वृक्ष से चिरौंजी की गुठलियों को तोड़कर वर्षों औने-पौने दामों में व्यापारियों को बेचते रहे हैं. व्यापारी भी उनके भोलेपन का फायदा उठाकर उन्हें बहला-फुसलाकर, इनसे महंगी चिरौंजी को मात्र सौ रुपए प्रति किलो ग्राम की सस्ती कीमत में खरीदकर खुद खुले बाजार में बेचकर मोटा मुनाफा कमाते थे, लेकिन अब हालात बदल गए हैं, जनजातियों ने प्रशासन की मदद से समिति बनाकर खुद की प्रसंस्करण इकाई लगाई और अब खुद चिरौंजी की पैकेजिंग और बिक्री कर आमदनी अर्जित कर रहे हैं.

 

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles