पंडित मुस्तफा आरिफ द्वारा रचयित एक है ईश्वर (कुरान मंथन) एक उम्दा और स्तुति लायक महागीत है जिसमें उन्होंने अपने तमाम जीवन में अल्लाह ईश्वर परमात्मा से मिले संकेतों अनुभवों का निचोड़ निहायत ही सरल भाषा में इस प्रकार से पेश किया है कि हर खास ओ आम इसे आसानी से पढ़ समझकर जीवन में उतार सकता है । कहा जा सकता है कि महाकवि तुलसी दास जी की तरह ही आरिफ जी का यह महाकाव्य भाषा में सरल , उद्देश्य में स्पष्ट एवं प्रभु से तार मिलाने या दिल जोड़ लेने का एक अनुपम साधन है ।
इस्लामी मूल्यों को कुरआन की रोशनी में समझना और फिर उसे आम जुबान में प्रस्फुटित करना ऐसा दुष्कर कार्य है कि इसे करने में जन्मों जन्म की आवश्यकता लगती है किंतु पंडित आरिफ पर ऐसी ईश कृपा बरसी की उन्होंने इस श्रम साध्य कार्य को न केवल हाथ में लिया अपितु उम्र के इस अंतिम पढ़ाव में जी तोड़ मेहनत से इसे छंदों की शैली में पुस्तक की शकल में हम सभी के सम्मुख पेश कर दिया ।
पंडित मुस्तफा के उदार दृष्टिकोण , सर्व धर्म समभाव, मनुष्य मात्र से जाति धर्म की बाधा बिना प्रेम , निश्छल चरित्र आदि मूलभूत विशेषताओं की बानगी इस महागीत में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है ।
अमूमन कुरआन और उसके संदेश को केवल इस्लाम धर्म में आस्था रखने वालों तक सीमित करके ही देखा जाता है जबकि उसमे अल्लाह की और से दी गई हिदायते और निर्देश तमाम मानवों जीव जंतु श्रृष्टि के कल्याण के लिए ही है । इसी मूल मकसद को हाथ में लेते हुए पंडित आरिफ ने यह प्रयास किया है कि कुरआन के संदेशों का फायदा न केवल इस्लाम में आस्था रखने वालों तक पहुंचे बल्कि इसका लाभ दूसरे मत में यकीन रखने वालों तक भी पहुंचे ।
पंडित मुस्तफा ने अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में विभिन्न पदों पर रहते हुए देश विदेश की यात्राओं के दौरान एवं भिन्न भिन्न मत उपासना पद्धति के लोगो की आस्थाओं को देख समझकर जितने गहरे अनुभव प्राप्त किए वे सब भी इस पुस्तक में कही न कही छंदों के माध्यम से प्रस्फुटित हुए है । पुस्तक की प्रस्तावना में देश विदेश की श्रेष्ठ हस्तियों के कथन व उनके अमूल्य विचार पंडित मुस्तफा के दीर्घ सफल सार्वजनिक जीवन व उनके ताल्लुकात का आईना है ।
पुस्तक अल्लाह की हम्द ओ सना के साथ साथ एकेश्वरवाद को केंद्र में रखते हुए हर किसी को माबूद बना लेने से स्पष्ट मना करती है ।छंदों की शैली में सर्वशक्तिमान को ही एकमात्र इबादत योग्य मानते हुए उसके बनाए हुए प्राणियों में से किसी को भी माबूद न बनाने के स्पष्ट संकेत अनेको अवसर पर दिए गए है ।
ईश्वर महिमा का बखान करते हुए पुस्तक के सात अध्यायों में विभक्त तमाम सात सौ छियासी छंदों का संकलन और ताना बाना ऐसा है कि उसमे मानव मात्र के कल्याण की बाते सरल शब्दों में कही गई है । कही इंसानों को कुरआन की रोशनी में भली नसीहते है तो कही उन्हे दुष्कर्मों से होने वाले नुकसानों से भी चेताया गया है ।
मेरे अभिमत में यह किताब कुरआन में अल्लाह द्वारा अरबी भाषा में दिए गए उपदेशों व निर्देशों का हिंदी उर्दू मिश्रित आम हिन्दुस्तानी जुबान में ऐसा अमृत है कि जिसको पीने से आत्मा तृप्त हो सकती है । पंडित मुस्तफा का वर्षों की मेहनत से किया गया यह महा कृत्य मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है एवं सर्व धर्म समभाव में यक़ीन रखने वाले सज्जनों के लिए एक ऐसा राजपथ है कि जिसपर चलते हुए मानवता को सिंचित पुष्पित व पल्लवित किया जा सकता है । पंडित मुस्तफा आरिफ को इस महान कार्य के लिए दिल से सलाम है और उनके श्रम व पुरुषार्थ हेतु कोटिश: नमन है । उम्मीद की जा सकती है अल्लाह या सर्व शक्तिमान को समझने में उसके संदेश को जीवन में उतारने में और सामाजिक समरसता के धागों को सुदृढ़ और मजबूत करने में पंडित आरिफ़ की यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी । जब कभी मानवता गुमराह होगी और ईश्वरीय संदेशों को समझने में कोई अंदेशा दिल ओ दिमाग में आएगा यह पुस्तक हमे ज्ञान की नई रोशनी दिखाएगी । पंडित जी के मानव कल्याण निहित इस पुण्य कार्य पर लिखने को बहुत कुछ है लेकिन अपने शब्दों को यही विराम देता हूं